तनावग्रस्त ना हों- ध्यान करें

हमें तनाव क्यों होता है?

आज मैं तनाव और उसके प्रबंधन के बारे में बात करूंगा। जैसा कि हम जानते हैं कि हर व्यक्ति को कुछ तनाव होता है और इसकी मात्रा मंद से तीव्र तक हो सकती है। तनाव के मुख्य स्रोतों में चिंताएँ, चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, अहंकार, ईर्ष्या और हमारे द्वारा प्राप्त असफलता आदि हैं। आम तौर पर, हम जो चाहते हैं, इच्छा करते हैं और सोचते हैं, इसका विपरीत होने पर गुस्सा और चिड़चिड़ाहट उत्पन्न होती है। न्याय की दृष्टि से उचित विरोध से हमें गुस्सा नहीं आना चाहिए लेकिन जब कारण खो जाता है, तो अहंकार भीतर आ जाता है। ईर्ष्या भी गुस्से को बढ़ावा देती है। तनाव, हृदयाघात के बढ़े हुए खतरे, बीपी के बढ़ने, माँसपेशियों के दर्द, पेट और आंत की समस्याओं, छाले, दमा आदि से सम्बंधित होता है।
avoid needless worries
कई बार सही जानकारी की कमी और गलत जानकारी होना चिंता उत्पन्न कर देता है। तो तरीका यह है कि अकेले चिंता ना करें! जब भी आप चिंतित हों, फ़ोन उठाएँ, अगले कमरे में जाएँ, अपने किसी मित्र, सहकर्मी या जीवनसाथी से बात करें और तथ्यों को सही कर लें। चिंताओं पर किये गए एक अध्ययन के अनुसार, 40% चिंताएँ कभी ना होने वाली घटनाओं के बारे में होती हैं, 30% चिंताएँ हो चुकी बातों के बारे में होती हैं, 12% गैरजरूरी स्वास्थ्य चिंताएँ होती हैं, 10% चिंताएँ छोटी-मोटी होती हैं और केवल 8% चिंताएँ ही सही या न्यायोचित होती हैं। हालाँकि थोड़ी चिंता लाभकारी हो सकती है, यदि यह आपको किसी समस्या का हल निकालने में सहायता करे।

तनाव से मुकाबला

  • आलोचना को स्वीकारें
  • दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति लोकतान्त्रिक रुख अपनाएँ।
  • ईर्ष्या का सही उत्तर उदारता है।
  • आभार और प्रशंसा का अभ्यास करें।
  • सकारात्मक सोचें
  • स्वयं को और दूसरों को क्षमा कर दें।
  • स्वयं को दूसरों से कारणरहित प्रेम प्राप्त करने की आदत डालें।
  • अपने हृदय से स्वयं और दूसरों को बिना कारण के प्रेम दें।
  • सकारात्मक कदम उठाएँ और समस्या से निपटने की योजना बनाएँ।

धीमी प्रतिक्रिया या गतिविधि जीवन की रफ़्तार को कम करने और जीवन का आनंद लेने की वकालत करती है, बजाए इसके कि लगातार भागते ही रहा जाए। तेज गति की जीवनशैली ह्रदय के लिए अनुकूल नहीं होती, जल्दबाजी से तनाव बढ़ता है जो शरीर में कोर्टिसोल का स्तर बढ़ाता है और व्यक्ति को हृदयाघात के बढ़े हुए खतरे तक ले जाता है। जैसा कि एक बार गांधीजी ने कहा था, “जीवन की गति बढ़ाने के अलावा भी जीवन में बहुत कुछ है”। यदि आप वास्तव में सोचने के लिए गति को धीमा करते हैं, तो आप ज्यादा चतुराई से निर्णय कर पाते हैं जिनसे बेहतर परिणाम आते हैं जिससे लम्बी दूरी में आपका समय ही बचता है।

ध्यान

ध्यान करना, स्वस्थ रहने और भावनात्मक संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है। अमरीका में हुए एक अध्ययन के अनुसार, ह्रदय रोग से ग्रस्त, नियमित रूप से भावमय ध्यान करने वाले अफ्रीकन-अमेरिकनों में हृदयाघात या मस्तिष्क आघात होने या इन सभी कारणों से मृत्यु होने की संभावना, 5 वर्षों तक स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा लेने वाले व्यक्तियों के मुकाबले, 48% कम थी। इसी प्रकार, सक्रिय ध्यान, जो वर्तमान पर एकाग्रता को बढ़ाता है, लम्बे समय से बने हुए दर्द को दूर करने में उपयोगी पाया गया है। ध्यान, मन और शरीर पर शांतिकारक प्रभाव करता है, तनाव को घटाता और और मस्तिष्क की तरंगों के प्रकार को संतुलित करता है।
  • किसी शांत स्थान पर पैर मोड़कर और पीठ को सीधा रखकर आराम से बैठें।
  • अपनी आँखें बंद करें, धीमी और गहरी साँस लें।
  • किसी एक वस्तु पर एकाग्र हों।
  • जब भी मन भटके, अपनी एकाग्रता को उस वस्तु पर लौटा लाएँ, यह कार्य अभ्यास से सरल होता जाएगा, इसलिए प्रयास करते रहें।
  • 2-3 मिनट से शुरुआत करें और एक दिन में 20 मिनट तक ले जाएँ।
  • इसी मुद्रा में बैठे हुए “ॐ” का उच्चारण करते रहें। मन को भीतर की तरफ लाएँ और ध्वनि और शब्द पर ध्यान केन्द्रित करें। यह जप या उच्चारण गुस्से को कम करने के लिए होता है; इसे बार-बार दोहराएँ।
Mediation is about spirituality, not religion.
ध्यान अध्यात्म से सम्बंधित है, ना कि धर्म से।

विश्राम लेना लाभकारी होता है।

उच्च तनाव में जीना प्रतिदिन की बात हो गई है। व्यावसायिक, सामाजिक, पेशेवर और शैक्षिक जगत में प्रतिस्पर्धा अत्यधिक बढ़ गई है। जिसके परिणामस्वरूप, लगभग हर व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बलपूर्वक अपनी नसों की ऊर्जा निकाल देनी पड़ती है जो उससे हड्डियों तक थका हुआ, तनावग्रस्त और व्याकुल बनाकर छोड़ती है। कई गृहिणियां शाम तक इतनी थक जाती हैं कि वे अपने पतियों के लिए आनंददायक साथी तक नहीं रह पाती। व्यग्र नसें, तीव्र और तीखी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करती हैं, जिससे दुःख, कष्ट और अधिक बढ़ जाते हैं। रोजमर्रा के जीवन के तनाव को कम करने वाले सुझाव:
  • ऐसा ना सोचें कि आपके द्वारा विश्राम को दिया गया समय फालतू है और ना ही ये सोचें कि आप फौलाद के बने हुए हैं।
  • विश्राम के लिए उचित समय चुनें।
  • यदि आप दिन भर के लिये परिश्रम वाली गतिविधि में जुटे हुए हैं तो अपने आराम को इस पूरी अवधि के दौरान बाँटें, अर्थात हर दो घंटे में कुछ मिनट विश्राम लें।
  • अपने दिन की गतिविधियों को देर रात तक पूरा करने की आदत को छोड़ने का प्रयास करें।
  • अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या को व्यवस्थित करके अपनी ऊर्जा के अपव्यय को रोकें।
  • छोटे मुद्दों/बातों पर अपनी ऊर्जा नष्ट ना करें।
  • अपनी नसों-नाड़ियों पर जोर डालने वाली बेकार की बहसों में ना पड़ें।

गहरी शांति देने वाली तकनीकें

  • एक शांत कोना चुनें और आरामदायक कुर्सी पर विराम लें, आपने आस-पास की दुनिया की तरंगों से बचने के लिए अपनी आँखें बंद कर लें।
  • दिए गए शब्दों को धीमे-धीमे दोहराएँ ताकि वे आपके मन के लिए निर्देशों का कार्य कर सकें “मैं गहरे प्रकार से आराम लेने जा रहा हूँ। मैं अपने हाथों से शुरू कर रहा हूँ; मेरे हाथ झूलते और भारी होते जा रहे हैं; वे भारी और भारी होते जा रहे हैं।”
  • अपने हाथों को झूलने दें, मानों वे किसी वृक्ष की शाखा से ढीली झूलती हुई पत्तियाँ हों।
  • अपनी भुजाओं को उठाएँ और उन्हें ऐसे गिराएँ मानों उनमें प्राण ही नहीं हैं।
  • तनावग्रस्त हर मांसपेशी को आराम लेने दें।
  • अपने शरीर के हर हिस्से को आराम दें।
  • आप अधिक और अधिक शांत महसूस करेंगे।

नींद

अधिकतम लाभ पाने के लिए आठ घंटों की गहरी नींद लेने की सलाह दी जाती है; अर्थात मस्तिष्क से हानिकारक रसायनों की सफाई, मस्तिष्क का ताप सम्बन्धी नियंत्रण, ऊर्जा और भोजन की सुरक्षा, ऊतकों का पुनर्जीवन, मस्तिष्क स्थित सीखने वाले मार्गों का व्यवस्थित होना। नींद तनाव को कम करती है और आपको अधिक सतर्क बनाती है। छोटे बच्चों को 10-12 घंटों तक नींद की जरूरत होती है; क्योंकि मनुष्य के विकास हेतु आवश्यक एक महत्वपूर्ण हॉर्मोन का नियंत्रण नींद के दौरान होता है। लम्बे समय तक बनी रहने वाली नींद की कमी मोटापा, मधुमेह, ह्रदय और सम्बंधित नसों के रोग और संक्रमणों के खतरे को बढ़ाती है।